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बिहारी मुसलमानों की कौन सुनता है वहां?

फॉरेन अफेयर्स
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आजादी मिलने के साथ ही विभाजन ने हिंदुओं को जो जख़्म दिये वे भारत आकर धीरे-धीरे भर गए। पूर्वी पाकिस्तान औऱ पश्चिमी पाकिस्तान से आए हिंदुओं से मूल हिंदुस्तान के किसी हिंदू ने कोई भेदभाव नहीं किया। वे धीरे-धीरे अपनी रोजी-रोटी कमाने लगे और यहां के समाज में घुल-मिल गए। पर हां, छूट गए गांव-घर, शहर, जमीन-जायदाद की याद आहें बनकर निकलती रही। पर ऐसा मुसलमानों के साथ नहीं हुआ। बड़े पैमाने पर दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बिहार के मुसलमान पाकिस्तान चले गए। कुछ रास्ते में मारे गए, कुछ वहां जाकर रोजी-रोटी की चिंता औऱ छूट गए भूगोल की यादों में डूबकर मर गए। जो जिंदा बचे वे आज तक उस समाज के भीतर जज्ब नहीं हो पाए। आज के पाकिस्तान में वे मुहाजिर बनकर जी रहे हैं-तीसरे दर्जे के नागरिक औऱ जो पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश गए वे उर्दूभाषी मुसलमान बंगाली मुसलमानों के बीच खप ही नहीं पाए। आज तक वे वहां बिहारी मुसलमान कहे जाते हैं। न सरकारी तौर पर आजादी है और न सामाजिक तौर पर।
अपने मूल वतन से उखड़कर पाकिस्तान गए मुसलमानों को वाकई न ख़ुदा ही मिला, न विसाले सनम। नई उम्र के बच्चे अपने पुरखों को कोसते हैं-उनके फैसलों को कोसते हैं औऱ फिर अपने आपको भी कि वे चाहकर भी अपने पुरखों के गलत फैसले को ठीक नहीं कर सकते। वे चाहकर फिर वहां लौट नहीं सकते जहां से उखड़कर उनके पूर्वज गए थे। अब तो कोई उनसे हाथ भी न मिलाएगा, जबकि वे तपाक से गले मिलना चाहते हैं। पिछले साल जब मैं पाकिस्तान गया था तो वहां सहारनपुर, मेरठ, लखनऊ, इलाहाबाद, बुलंदशहर, भागलपुर, बनारस से गए मुसलमानों की पुरानी पीढी़ से मिला था। उनके बचपन के लखनऊ के बारे में वहीं जाना था। मरने से पहले एक बार फिर लखनऊ देखने की उनकी विकलता को महसूस किया था। जैसे दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास मलकागंज इलाके में कुछ बूढे सिखों को रावलपिंडी और लाहौर के लिए बेकरार होते देखा है।

बदीउज्जमां का उपन्यास एक चूहे की मौत के बारे में सुना है कि वह बिहार से पूर्वी पाकिस्तान गए मुसलमानों पर केंद्रित है, जो अब वहां बिहारी मुसलमान कहलाते हैं। पर अब तक मुझे बिहारी मुसलमानों की ठीक-ठीक वहां क्या हालत है, यह पता नहीं। मैं एक बार बांग्लादेश जाना चाहता हूं, वहां गलियों में भटकना चाहता हूं और उस देश की गलियों में आज भी अपनी मुकम्मल पहचान और अधिकारों के लिए भटकते बिहारी मुसलमानों की ज़मीनी हकीकत को देखना चाहता हूं। इस मामले में आपकी क्या राय है?

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